कम्यूटर बूटिंग के प्रकार ( Computer Booting)



कंप्यूटर बूटिंग (Computer Booting) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो कंप्यूटर को चालू करने पर शुरू होती है और ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करके उपयोगकर्ता के लिए सिस्टम को तैयार करती है। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है, जिन्हें नीचे विस्तार से समझाया गया है ।


1. कोल्ड बूटिंग (Cold Booting) :- जब कंप्यूटर को पूरी तरह बंद करके फिर से चालू किया जाता है। और कंप्यूटर आसानी  से सुरू हो जाता है इस प्रक्रिया को कोल्ड बूटिंग कहा जाता है।
2. वार्म बूटिंग (Warm Booting) :- जब  हम कंप्यूटर पर कार्य कर रहे हों एवं किसी कारणवश कंप्यूटर को Reboot करना पड़ें तो हम (Ctrl+Alt+Del Key ) तीनों एक साथ press प्रेस कर देते हैं और हमारा कंप्यूटर Reboot होना प्रारंभ हो जाता है। इस प्रक्रिया को वार्म बूटिंग (Warm Booting) कहते हैं।

 1. पावर ऑन सेल्फ टेस्ट (POST - Power On Self Test) :-
    जब कंप्यूटर चालू किया जाता है, तो सबसे पहले POST प्रक्रिया शुरू होती है।
   POST का मुख्य काम हार्डवेयर कंपोनेंट्स (जैसे RAM, हार्ड डिस्क, प्रोसेसर, कीबोर्ड, माउस आदि) की जांच करना होता है।
   यदि कोई समस्या होती है, तो POST एरर कोड (बीप साउंड या स्क्रीन पर मैसेज) के माध्यम से उपयोगकर्ता को सूचित करता है।

2. BIOS/UEFI लोड होना :-
    POST के बाद, BIOS (Basic Input/Output System) या UEFI (Unified Extensible Firmware Interface) लोड होता है।
   BIOS/UEFI एक फर्मवेयर है जो हार्डवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम के बीच संवाद स्थापित करता है।
   BIOS/UEFI सिस्टम की सेटिंग्स (जैसे बूट डिवाइस का चयन, टाइम और डेट सेटिंग्स आदि) को मैनेज करता है।
    यह बूट डिवाइस (जैसे हार्ड डिस्क, SSD, USB, या CD/DVD) को चुनता है जहां से ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड किया जाएगा।

3. बूटलोडर (Bootloader) का काम :-
    BIOS/UEFI बूटलोडर को लोड करता है, जो ऑपरेटिंग सिस्टम को मेमोरी में लोड करने का काम करता है।
   बूटलोडर एक छोटा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो ऑपरेटिंग सिस्टम के कर्नेल (Kernel) को मेमोरी में लोड करता है।
   यदि एक से अधिक ऑपरेटिंग सिस्टम इंस्टॉल हैं, तो बूटलोडर उपयोगकर्ता को चुनने का विकल्प देता है।

 4. ऑपरेटिंग सिस्टम लोड होना :-
   बूटलोडर ऑपरेटिंग सिस्टम के कर्नेल को मेमोरी में लोड करता है।
   कर्नेल सिस्टम के सभी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर संसाधनों को मैनेज करता है।
   ऑपरेटिंग सिस्टम के अन्य कंपोनेंट्स (जैसे डिवाइस ड्राइवर, सिस्टम सर्विसेज, और यूजर इंटरफेस) भी लोड होते हैं।

5. लॉगिन स्क्रीन और यूजर सेशन :-
   ऑपरेटिंग सिस्टम लोड होने के बाद, उपयोगकर्ता को लॉगिन स्क्रीन दिखाई देती है।
   यूजर अपने अकाउंट में लॉगिन करके सिस्टम का उपयोग शुरू कर सकता है।
    यदि पासवर्ड सेट है, तो यूजर को पासवर्ड डालना होगा।

6. डेस्कटॉप/होम स्क्रीन तक पहुंच :-
   लॉगिन करने के बाद, ऑपरेटिंग सिस्टम डेस्कटॉप या होम स्क्रीन दिखाता है।
   अब कंप्यूटर पूरी तरह से उपयोग के लिए तैयार है, और यूजर एप्लीकेशन चला सकता है, फाइल्स एक्सेस कर सकता है, और अन्य कार्य कर सकता है।

 बायोस सेटिंग (BIOS Setting) :- बायोस स्क्रीन को एक्सेस करने के लिए एवं प्रणाली के पैरामीटर मे परिवर्तन के लिए निम्न प्रकार के टिप्स है?

1. कंप्यूटर को स्टार्ट करते हैं।

2. बायोस सेटअप यूटिलिटी मे प्रवेश के लिए जब हम सिस्टम को पॉवर ऑन सेल्फ टेक्स्ट मे हो तब F2 Key press दबाते है  । जब बायोस प्रारंभ होता है तो मुख्य बायोस सेटिंग यूटिलिटी की टॉप लेवल स्क्रीन प्राप्त होती हैं। स्क्रीन पेज पर सात sewan मेन्यू विकल्प दिखाई देते हैं।

3. निम्न विकल्पों का चयन करने के लिए लेफ्ट, राइट तीर के बटनों का प्रयोग करते हैं।

4. प्रत्येक मेन्यू के विकल्प के चयन पर उस विकल्प की एक अलग से टॉप लेवल स्क्रीन दिखाई देती हैं।

5.  टॉप लेवल स्क्रीन पर उपस्थित विकल्पों का चयन करने के लिए एवं स्क्रॉल अप व डाउन करने के लिए अप व डाउन  बटनों का प्रयोग करते हैं।

6. यदि किसी फिल्ड मे बदलाव किया जाता है तो उसके विकल्पों का चयन करने पर स्क्रीन के दाएँ कॉलम मे कुछ विकल्प प्रदर्शित होंगे।

7. यदि कोई Fild फिल्ड किसी सबस्क्रीन से लिंक रखता है तो दाएँ कॉलम मे उसकी सबस्क्रीन को एक्सेस करने के लिए  Enter इंटर दबाने का निर्देश दिया होता है।

निष्कर्ष :-
कंप्यूटर बूटिंग एक जटिल प्रक्रिया है जो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच समन्वय स्थापित करती है। यह प्रक्रिया कंप्यूटर को उपयोग के लिए तैयार करती है और ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करती है। यदि बूटिंग प्रक्रिया में कोई समस्या आती है, तो कंप्यूटर ठीक से काम नहीं कर पाता है।









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